Sunday, February 27, 2011

marghat.......

,
मरघट..
मरघट ही है अंतिम सीमा ,
हर एक आने वाले की ,
फिर क्यों तू डरता है प्राणी,
इस अंतिम सीमा छूने से...
बस यू ही चलता जा तू बस ,
जीवन की इस कठिन रह पर ,
पथ की अन्तिम सीमा पर,
मरघट ही पाएगा
तू फिर...
जीवन चक्र बना है ये तो ,
जो छूता जाता है सब को ,
न जाने किस पल किस लम्हा ,
ये छू जायेगा तुम को........
क्योकि 
मरघट ही है अंतिम सीमा
हर एक आने वाले की
तू भी तो आया है जग में
फिर कैसे तू बच पाएगा........

                                                 ----रितेश रस्तोगी 

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