Wednesday, July 27, 2011

wo ankahe alfaz..........

,

हलक पे जो आये
 पर जुबान से न निकले
 लबो पे अटक 
जो कही गम हो जाये


वो रुकते रुकाते
कशिस को बुझाते
ज़ेहन में हैं घुलते
कुछ अनकहे अल्फाज़

जो रोके रुके हैं
  छुपाये छुपे हैं
  कुछ मेरे तुम्हारे
    वो अनकहे अल्फाज़

   वो कहा जो नहीं था
     वो सुना जो नहीं था
     पर ज़ेहन में हैं गूंजे
   वो अनकहे अल्फाज़

 
 जो चाह बहुत
   पर कभी कह न पाए
    वो मेरे ज़ेहन के
   कुछ फाजिल अल्फाज़

   ह्रदय से बहे जो
      पर ज़ेहन से न निकले
  कहीं फंस बन के
  अटकतेह अल्फाज़


   पर रोको न इसको
    हैं तोको न इसको
  मन की नदी में
  जुबान से बहा दो

   वो अनकहे अल्फाज़
    वो अनकहे अल्फाज़ 
............................................................................................................

Halak pe jo aye
par juban se na nikle
labo pe atk
jo kahi gum ho jaye


wo rukte rukate
kashis ko bujhate
zehan me hain ghulte
kuch ankahe alfaz

 
jo roke ruke hain
chupaye chupe hain
kuch mere tumhare
wo ankahe alfaz
  
wo kaha jo nahi tha
wo suna jo nahi tha
par zehan me hain gunje
wo ankahe alfaz

 
jo chaha bahut
par kabhi kah na paye
wo mere zehan ke
kuch fazil alfaz

hriday se bahe jo
par zehan se na nikle
kahin fans ban ke
atakteh alfaz

par roko na isko
hain toko na isko
man ki nadi me
zuban se baha do

wo ankahe alfaz
wo ankahe alfaz




Saturday, July 23, 2011

Na jane..........

,



न जाने क्यों नम हैं आज ऑंखें मेरी और ये दिल मेरा.....
न जाने क्या आज कल हो रहा यहाँ....
न जाने क्यों गुम है आज ज़िन्दगी तनहइयो के दरमियाँ......
और क्यों है गुम ख़ुशी रुस्वइयो के दरमियाँ.....
न जाने क्यों मन की तरंगे भी आज कुछ क्यों कह नहीं रही....
न जाने क्यों ये भी गुम हैं कही किसी रह में आज.....
न जाने क्या हो गया और न जाने क्या होगा अब यहाँ.....
और न जाने क्या पर्चियों और तनहइयो में गुजरे गा ये समा....
या फिर नहीं.... हाँ या फिर नहीं.....
फिर एक नयी सुबह आयेगी........
और एक नयी उम्मीद लाएगी......
और फिर कुछ नयी हसीन हसरतों की समा बांध जाएगी......
और ये मायूसी फिर कहीं गुम हो जाएगी......
हाँ गुम हो जाएगी......


Monday, July 18, 2011

maut ke aagosh mai......

,


ज़िन्दगी मदहोश थी ,
मौत के आगोश में
ले गयी फिर ज़िन्दगी ,
मौत के उस धेर पे

ले लिया जिसने वहां पे ,
रूह को इस जिस्म से
वो समझ न पाए फिर भी,
मौत के इस खेल को

काल का जो चक्र था,
वो चल रहा, अपनी गति
मौत थी जिस पल लिखी ,
वो आ गयी, उस घडी

पर वो समझ न पाए ये,
की अंत उनका है यही 
क्योकि ज़िन्दगी मदहोश थी ,
मौत के अघोष में..

और वो वही फिर सो गए ,
मौत के आगोश में.......
हाँ सो गए... हाँ खो गए...,
मौत के आगोश में.......  
 

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