Thursday, February 6, 2014

Katra-e-ishq.......(कतरा-ए-इश्क)

,

कतरा-ए-इश्क यूं  जाया न कर तू ,
इन्तजार कर तू तो बस फिजाओं का.….
ये तो रूह कि इबादत का फलसफा है ,
इसे फिज़ूल समझ यूं बरबाद न कर.… 

 मालुम है दिल तेरा बहुत ही आशिकाना है ,
 पर इस कमजर्क को बस इतना समझाना है.…. 
 कि हर चेहरा नही होता यहाँ यूं बस डूब जाने को  
 सो कतरा-ए-इश्क यूं जाया न कर इंतजार कर
हाँ बस इंतजार कर.….

Saturday, January 26, 2013

Gantantra.....(गणतंत्र)

,

गणतंत्र की हत्या करके ,
ये गणतंत्र दिवस मनाते  हैं ।
बांध  के पट्टी आँखों पे,
पूरे देश को यूं  झूठलाते  हैं ।।

उन जनप्रतिनिधियों से,
मैं तो बस ये पूछ रहा ।
कि  क्या तुम लोगों  को भैया,
इस शब्द का मतलब मालूम है ।।

या 
फिर सत्ता के इन गलियारों में,
तुम इसको  भी भूल चुके ।
खैर 

राष्ट्र गन गाने से नहीं,
न ही तिरंगा लहराने से।
संबिधान की इज्जत होती है,
जनता का मान बढ़ाने  से ।।

जिसने मत से अपने ,
तुमको है गौरवान्वित  किया।
उनपे ही देखो तुमने,
भाँजी लाठी और गोले  यहाँ ।।

क्या  यही राष्ट्र का मान है ,
और उसकी आवाज का ।
या फिर ये है, इस गणतंत्र की 
यूं गला घोट कर हत्या ।।

Friday, January 11, 2013

Khwabgahon ke darmiyan..... (ख्वाबगाहों के दरमियाँ....)

,

ये वक्त है या मुक्कदर, हम मुकर्रर न कर सके
बस बन पतंग वक्त की, इस फिजा में उड़ रहे ..........

हमे तो इंतेज़ार है बस, फिजाओं के पलटने का        
जिन्हें इल्म हो बस, हमारी चाहतों के मंजरों का.........

सो बैठ खामोश हम यहाँ, सबरा का लेते हैं इम्तिहां
ताकी सच कर सके, जो है ख्वाबगाहों के दरमियाँ........

ख्वाबगाहों के दरमियाँ
..................

Sunday, December 30, 2012

Fir ek lamha..... (फिर एक लम्हा....)

,

फिर एक लम्हा मानो  खत्म होने को है...
एक कारवां छोड दूजे के हम होने को हैं...
पर न मालूम कहाँ मंजिलें हैं छुपी ...
जिनकी हसरत में हम सब कुछ खोने को हैं ...

Fir zindagi....(फिर ज़िन्दगी...)

,

फिर ज़िन्दगी कि हकीकत से,
रूबरू कराया है वक़्त ने ।
ये मोड है इस सफ़र का ,
या रहे-ए-दस्तूर कोई ।।

मै मुसाफिर न था ज़िन्दगी कि
उन तनग गलियों का ।
पर क्या करूँ वक़्त ने रास्ता ,
तैय कराया है उन गलियों का ।।


Saturday, December 29, 2012

Jo maun thi fizayen (जो मौन थी फिजाएं....)

,



जो मौन थी फिजाएं, 
आज वो भी है रो पड़ी।
ले अश्रुओं कि धरा, 
पूरी सदी है रो पड़ी।।

सो जग जाओ अभी भी, 
ओ आका इस जामने के।
के कहीं ये जग गाये तो, 
शायद तुम आका न हो फिर ।।

Thursday, December 20, 2012

Rok baithe kadam wo.... (रोक बैठे कदम..)

,



रोक बैठे कदम वो हमारी आहटों पे, की कहीं रास्तों पे नज़र मिल न जाये..........
सो रास्ता ही यहाँ पर बदल डाला हमने, की नज़रों को उनकी कोई तकलुफ़ न हो फिर............

Wednesday, October 10, 2012

Kinara - e - zindagi (किनारा-ए -ज़िन्दगी)

,


पन्ने समेटता हूँ मै,
ज़िन्दगी के फलसफों के यूं............
की कोई हसरत मेरी यहाँ,
बाकी न रहे फिर.............

सो बैठ खामोश कुछ लम्हा, 
मै जोड़ता हूँ............
उन पन्नो पे बिखरे फलसफों से कुछ खुद को, 
ताकी किनारा-ए -ज़िन्दगी हासिल हो हमे भी.............

Tuesday, September 25, 2012

khud ko khojta hoon(खुद को खोजता हूँ......)

,
रूह से बिछड़ के खुद की, खुद को खोजता हूँ...
कि परछाइयों के दमन तक, अब तो टटोलता हूँ....
चेहरे यहाँ पे खुद के , इतने बदल चूका हूँ....
की हर चेहरे को देख बस, खुद का चेहरा सोचता हूँ ...

                                                                                              ---रितेश रस्तोगी

Wednesday, May 23, 2012

Mai musafir bana tha.... ( मै मुसाफिर बना था..... )

,

मै मुसाफिर बना था,
कारवां का तुम्हारे....
तो साथ मंजिल तुम्हारे, 
कुछ तै कर रहा था....

पर रस्ते कुछ अलग से,
दिख रहें हैं यहाँ पर....
सो अलविदा कहूँगा,
इस सफ़र को तुम्हारे....

पर मिलूँगा यकीन्न,
किसी और डगर पर....
किसी और मोड़,
किसी और सफ़र पर....

Thursday, May 3, 2012

Tanhai se mai bhag raha... (तन्हाई से मै भाग रहा...)

,
तन्हा  तन्हा रहने का जब, 
एहसास मुझे कुछ होता है..... 
मै भीड़ में खिच कर आता हूँ, 
उस एहसास  कों दूर भगाता  हूं....

पर जाने तन्हा मंजर 
मुझको क्यों घेरा करते  है.....
कोई कशिश लिए कोई दर्द लिये,  
मानों  ये फांस चुभोतें है....... 

यही वजह है, जब भी मै, 
अपनी यादों को दोहराता हूँ....
तब तन्हाई के हर लम्हे को 
खुद से दूर भागता हूँ....   

जैसे  

यादों के पक्के धागों से, 
पल-पल मै ख़ुद कों खीच रहा...  
फिर बांध कहीं खुद को उनसे  
तन्हाई से मै भाग रहा....

तन्हाई से मै भाग रहा....

Sunday, April 29, 2012

Kagaaz pe jo (कागज़ पे जो )

,


कागज़ पे जो सिमटे यहाँ,
तेरे बिखरे हुए अल्फाज़ वो.....
मानो की हमसे कह गए
तेरी तन्हाईओं क़े कुछ राज़ वो....

पढ़ कर उन्हें लगता था बस,
कि  पढता रहूँ, पढता रहूँ.... 
तेरी रूह की आवाज को 
चुपचाप बस सुनता रहूँ....

पर न जाने क्यों पढ़कर उसे,
अपना सा कुछ है लग रहा;
जैसे मेरा अपना ही अक्स,
उसमे मुझे हो दिख रहा.....

इसलिए तुम तो बस यहाँ
उन अल्फाज़ों को लिखते रहो....
पन्नो पे दे शक्ल उनको,
हम पे यूं बस जाहिर करो....

हम पे यूं बस जाहिर करो....

Monday, March 19, 2012

bemani bahut hai ( बेमानी बहुत है )

,

ज़िन्दगी के यूं तो, 
अफसाने बहुत हैं.....
मौत के कम इसके,
दीवाने बहुत हैं.......

यूं तो हर मोड़ पे,
इसे चाह करें हम.....
इसकी फितरत में फिर भी,
बेमानी बहुत है.......

Friday, March 16, 2012

kuch modo pe (कुछ मोड़ो पे)

,

कुछ मोड़ो पे आ रुके,
तो कुछ मंजिल से जा मिले.....
थे ये मुकद्दर के फासले,
जो वक़्त की ठोकर पे बस रुके...

Wednesday, March 14, 2012

apne paymanoo me (अपने पयामानो में)

,

वो अपने पयामानो में, कुछ बयाँ होते रहे थे ,
और हम उनके पयमाने ही न पढ़ सके......
मनो वो अपने अल्फाज़ो में, ही कुछ बुद-बुदा रहे थे,
और हम उनके अल्फाज़ ही न समझ सके.....

Wednesday, March 7, 2012

Gar bandh pata hasrate (गर बाँध पाता हसरते)

,


गर बाँध पाता हसरते...
तो तेरी चाहत न होती...
तुझे पाने की तमन्ना...
और आरजू न होती...

Hasrat (हसरत )

,


हसरतों को पन्नो में 
समेटने चला था...
पर मालूम न था 
उसका अंदाज़-ए-बयाँ... 

सो कुछ लिखता गया.. 
कुछ कहता गया...  
 ख्वाबगाहों से उठा बस ... 
कागज़ पे ही पटकता गया... 

 ****पर जब देखा उन्हें तो मालूम हुआ की**** 
जैसे  

कुछ पूरी थी उनमे...... 
कुछ अधूरी थी उनमे.... 
कुछ कही हुई...... 
कुछ अनकही थी उनमे.....  

सो मै कहता गया... 
और मै सहता गया... 
कुछ अधूरी की फंस लिए....
बस अल्फाजों में अपने बहता गया.... 

मनो एक तमन्ना लिए..... 
एक आरजू लिए..... 
उन्हें पूरा करने का बस...... 
खूद से एक वादा लिए.....

Thursday, March 1, 2012

Raha jati hai yaad (रह जाती है याद )

,
 
वो बचपन की यादें
वो लड़पन का साथ
वो कुछ मेरी बातें
वो कुछ तेरी याद

वो किस्से सुनाना
वो लड़की पटाना
वो मुड़-मुड़ के कहना
वो दिखती है माल

वो कह देना तुमसे
अपने दिल का सब हाल
फिर सुनना तुम्हारी
दिनभर की बात

याद है मुझे अब भी
वो सारी बात
वो लड़ना मेरा
वो चिढ़ना तेरा

वो झगड़े के बाद
पैसे लौटने की बात
फिर कुछ सोच कर
वो गरियाना मेरा यूं

वो फैलाकर बकर 
बस लगाना मज़े यूँ
फिर सब को हँसा के
यूँ महफ़िल सजाना 

फिर होली की मस्ती
दिवाली की धूम
वो दशहरे की हुल्लड़ 
न्यू इयर की झूम

वो हर बात पर 
बस करना मजाक
वो हर बात पर
बस दोहराना यही कि

टेंशन से होता नहीं
 अपना कोई काम
फिर तिकड़म लगा कर 
हर मुश्किल भगाना 

याद है मुझे अब-भी
वो हर एक जुगाड़
आये जो मुश्किल
करना बस याद

 दिल से दे देना
एक दस्तक-ए-खास
फिर पाओ गे तुम
मुझे अपने ही पास

क्योंकि दोस्ती है अपनी
इस दुनिया से खास
और ये बचपन की यादें
और लड़पन का साथ

याद आएगा हमको
मेरे-तेरे जाने के बाद
क्योंकी मिट जाता है
सब कुछ जाने के बाद

रह जाती है याद
रह जाती है याद
.......

Wednesday, February 29, 2012

Gar bemani na hoti... (गर बेमानी न होती)

,


गर बेमानी न होती आरज़ू उनकी.....
तो आज अपने पैमाने ही कुछ और होते..... 
हम तो जी लिए बस उनकी हसरतों में..... 
पर शायद हमसफ़र न बन सके उनकी राहों में.....

Friday, February 24, 2012

lafzon ke fitur (लफ़्ज़ों के फितूर)

,
गर लफ़्ज़ों के फितूर को हम यूंही बयाँ कर देते....
तो ये मुलाकात हालत सभी अपने होते....
पर इस जुबान का नपा होना, हमे गम-जया कर गया....
हम इज़हार-ए-बयाँ के अल्फाज़ ही खोजते रह गए और कोई हमारा मुक़द्दर ले गया...

Thursday, February 16, 2012

paimane (पैमाने )

,



मुकम्मल जहाँ नहीं क्या कोई, 
तेरे इन अल्फाज़ों के अक्स में...
या 
तेरे पैमाने ही कुछ इस कदर थे,
की वो बयाँ न हो सके...

Wednesday, February 15, 2012

wazu (वजू)

,
तेरे होने के वजू को खोदूं,
कुछ ऐसा दस्तूर कर दे तू ......
गर काफूर करले तस्वीर अपनी,
इन आँखों के नगमे से जो तू ......

Tuesday, February 7, 2012

siyasi pech....... (सियासी पेच)

,

सियासी पेच लड़ने को, 
तमाशा हो रहा देखो....
हुकूमत चाहिए इनको ,
यहाँ नोटेय कमाने को....

कभी ठाकुर बने है ये,
कभी पंडित बनेगे ये....
लिए मुद्दा विभाजन का,
तुम्हे बांटा करे है ये....

तुम्हारा वोट पाने को,
ये दरवाजा हैं खटकाये.....
बड़े वादे लिए मुहं में, 
तुम्हारा वोट ठग जाये......


कोई गाँधी बना फिरता ,
लगा बस नाम ही उनका....
कोई ले संग की लाठी ,
तुम्हारे भावों को छगता है....

छगन विद्या में माहिर हैं,
सियासत के सभी प्यादे.....
न कोई ईमान है इनका,
न कोई भगवान् है इनका....


कभी ले मंदिर का मुद्दा,
ये कुर्सी जीत जाते हैं.....
तो कभी ले आरक्षण की गर्मी,
ये पिछड़ों को रिझातें हैं.....

तुम्हारा उदधार करने को,
ये बीड़ा तो उठातें हैं....
पर किताबों और पन्नो में,
तरक्की ग़ुम कर जातें हैं......

तरक्की ग़ुम कर जातें हैं......    

Monday, January 30, 2012

khwabon se bichaad (ख्वाबों से बिछड़)

,


ख्वाबों से बिछड़ फिर तलाशता था उन्हें 
हसरतों की रौशनी में ख्वाब्गाहों के तले
ले उम्मीद का दामन बस हम तो थे चले 
पग-डंडियों के किनारे रास्तों के तले...     

Thursday, January 5, 2012

fir leh shakla teri ruh ka... (फिर लेह शक्ल तेरी रूह का)

,

फिर लेह शक्ल तेरी रूह का,

वो हमे कुछ बयां कर गयी

हम सोचते थे जिस सवाल को,

वो जवाब उस बात  का दे गयी

फिर रस्क किस बात का हम

करें तो करें उसे........

सो ले बस, इरादा रूठने का

हम तो एक
बहाना हैं खोजते....

हाँ बहाना हैं खोजते.... 

                                                                                                                 ---------रितेश रस्तोगी

Tere alfaz (तेरे अल्फाज़ )

,
तेरे अल्फाज़ तेरे लफ्ज़ बयाँ करते हैं.....
कुछ हकीकत तो कुछ ख़यालात बयाँ करतें हैं.....

                                                                                                                 ---------रितेश रस्तोगी

sawalon ko talashta tha (सवालो को तलाशता था)

,
सवालो को तलाशता था,
कुछ जवाबों के बाद, 
किसी अनजानी सी लहर के, 
जैसे उतार जाने के बाद.... 

पर न जाने क्यों आज, 
रुक गए है ये लम्हे, 
बिन सवालों के आज, 
बिन जवाबों के आज....
रुकूँ तो रुकूँ मैं, 
पर ये सोचता हूँ, 
की क्या कामिल नहीं, 
कोई इन मंजरों में....

जो इन सवालों की रूह को, 
पल भर में समझ ले....
                                                                                                                 ---------रितेश रस्तोगी

Wednesday, January 4, 2012

ilzamo ki kadi ( इल्जामो की कड़ी )

,
इल्जामो की कड़ी कुछ ऐसी लगी की, गलतियों का सबब हम लगा न सके फिर, 

टूट कर हम गिरे उन सवालों में यूं फिर, की उन सवालों का सबब हम लगा न सके फिर...

Monday, September 12, 2011

kuch fazil....( कुछ फाजिल )

,
 कुछ  फाजिल  तब्दीरों  से  उनकी  क्या  वो  कामिल  हो  गए ,
या  फिर 
कुछ  अल्फाजों  के गुफ्तार  से  उनकी  हम  गुमराह  हो गए...

Tuesday, September 6, 2011

sawalo ki........ ( सवालों की )

,
सवालों की कड़ी हम बिछाते गए यूँ
की  वजूद हम खुद का मिटाते गए यूँ
 
न उनपे यकीं था न खुद पे यकीं था
बस  सवालों के तरकश चलते गए यूँ
 
ये समय का पलट था या जेहनी खलल 
या उन तारों का लिखा निभाते गए  यूँ
 
पर करें तो करें क्या ,ये अब सोचते हैं 
ले सवालों को इन, खुद ही खोजते हैं
 
सबक पाने को उन गलतियों से हम अपनी 
 बस सवालो के तरकश खुद पे छोड़ते हैं ...

 हाँ छोड़ते हैं....................... खुद पे छोड़ते हैं

Saturday, September 3, 2011

anjan......

,

 अनजान थी वो
 अनजान सी वो
नाम होते हुए भी 
गुमनाम थी वो.....

ज़ेहन में है उतरी 
अक्स बन के वो मेरे
पहले लगता था सपना,
पर, क्या हकीकत में है वो ?


पर न जाने क्यों अब भी
ये खलल सा है रहता
किसी अनजानी सी राह का 

 वो अनजान सा सपना......
 

जो मिले वो मुझे फिर
तो छू के मैं देखूँ

हकीकत है वो
या फिर कोई सपना......


Friday, September 2, 2011

tum the to.....

,
तुम थे तो हाँ कुछ बात थी 
तुम नहीं तो शायद फिर नहीं
ये साथ वक़्त के साथ था 
शायद अब वो वक़्त ही नहीं

पर रहता नहीं वक़्त हर का हमेशा 
कभी न कभी तो  पलटता है ये भी 
जो पलटे ये मेरा तो साथ हो तेरा 
दुआ हैं खुदा से बस अब तो यही 

तुम्हारी कमी यु तो पल-पल खलेगी 
और हर महफ़िल तुम बिन सूनी लगेगी 
क्योकि तुम थे तो हैं कुछ बात थी
पर तुम नहीं तो हाँ यक़ीनन नहीं...

हाँ नहीं................हाँ नहीं..............

Sunday, August 21, 2011

ek bar wo kahin se

,
एक बार वो कहीं से
मिल जाये जो कहीं पे
तो अंजन न रहेंगे
दो अजनबी से किनारे


जो वक़्त की हो रहमत
मिल जाये वो कही पर
किस रह किस डगर पे
किसी मोड़ के किनारे


हम अंजन हैं यकीन्न
पर यूँही न रहेंगे
किसी मोड़ के किनारे
हम यकीन्न मिलेंगे

Wednesday, July 27, 2011

wo ankahe alfaz..........

,

हलक पे जो आये
 पर जुबान से न निकले
 लबो पे अटक 
जो कही गम हो जाये


वो रुकते रुकाते
कशिस को बुझाते
ज़ेहन में हैं घुलते
कुछ अनकहे अल्फाज़

जो रोके रुके हैं
  छुपाये छुपे हैं
  कुछ मेरे तुम्हारे
    वो अनकहे अल्फाज़

   वो कहा जो नहीं था
     वो सुना जो नहीं था
     पर ज़ेहन में हैं गूंजे
   वो अनकहे अल्फाज़

 
 जो चाह बहुत
   पर कभी कह न पाए
    वो मेरे ज़ेहन के
   कुछ फाजिल अल्फाज़

   ह्रदय से बहे जो
      पर ज़ेहन से न निकले
  कहीं फंस बन के
  अटकतेह अल्फाज़


   पर रोको न इसको
    हैं तोको न इसको
  मन की नदी में
  जुबान से बहा दो

   वो अनकहे अल्फाज़
    वो अनकहे अल्फाज़ 
............................................................................................................

Halak pe jo aye
par juban se na nikle
labo pe atk
jo kahi gum ho jaye


wo rukte rukate
kashis ko bujhate
zehan me hain ghulte
kuch ankahe alfaz

 
jo roke ruke hain
chupaye chupe hain
kuch mere tumhare
wo ankahe alfaz
  
wo kaha jo nahi tha
wo suna jo nahi tha
par zehan me hain gunje
wo ankahe alfaz

 
jo chaha bahut
par kabhi kah na paye
wo mere zehan ke
kuch fazil alfaz

hriday se bahe jo
par zehan se na nikle
kahin fans ban ke
atakteh alfaz

par roko na isko
hain toko na isko
man ki nadi me
zuban se baha do

wo ankahe alfaz
wo ankahe alfaz




Saturday, July 23, 2011

Na jane..........

,



न जाने क्यों नम हैं आज ऑंखें मेरी और ये दिल मेरा.....
न जाने क्या आज कल हो रहा यहाँ....
न जाने क्यों गुम है आज ज़िन्दगी तनहइयो के दरमियाँ......
और क्यों है गुम ख़ुशी रुस्वइयो के दरमियाँ.....
न जाने क्यों मन की तरंगे भी आज कुछ क्यों कह नहीं रही....
न जाने क्यों ये भी गुम हैं कही किसी रह में आज.....
न जाने क्या हो गया और न जाने क्या होगा अब यहाँ.....
और न जाने क्या पर्चियों और तनहइयो में गुजरे गा ये समा....
या फिर नहीं.... हाँ या फिर नहीं.....
फिर एक नयी सुबह आयेगी........
और एक नयी उम्मीद लाएगी......
और फिर कुछ नयी हसीन हसरतों की समा बांध जाएगी......
और ये मायूसी फिर कहीं गुम हो जाएगी......
हाँ गुम हो जाएगी......


Monday, July 18, 2011

maut ke aagosh mai......

,


ज़िन्दगी मदहोश थी ,
मौत के आगोश में
ले गयी फिर ज़िन्दगी ,
मौत के उस धेर पे

ले लिया जिसने वहां पे ,
रूह को इस जिस्म से
वो समझ न पाए फिर भी,
मौत के इस खेल को

काल का जो चक्र था,
वो चल रहा, अपनी गति
मौत थी जिस पल लिखी ,
वो आ गयी, उस घडी

पर वो समझ न पाए ये,
की अंत उनका है यही 
क्योकि ज़िन्दगी मदहोश थी ,
मौत के अघोष में..

और वो वही फिर सो गए ,
मौत के आगोश में.......
हाँ सो गए... हाँ खो गए...,
मौत के आगोश में.......  

Sunday, May 8, 2011

raat ke paigam......

,
यूं तो रात हर रोज आती है पर कुछ सुबह के साथ खुश खबरी लती है तो कुछ सुबह के साथ एक कशिश दे जाती है वो रात ही क्या जो कोई पैगाम न ले कर आये और वो सुबह ही क्या जो ख़ुशी और कशिश की किरने न बिखेर पाए |

Tuesday, May 3, 2011

yaadon ke pano........

,
यादों के पन्नो में , कुछ अहसासों के दरकत है |

कुछ खोये से हम हैं , कुछ खोये से तुम हो ||

न जाने किस बात का , अब मैं इंतजार करता हूँ |

कभी खुद से तो कभी , तुम्हारी यादों से सवाल करता हूँ ||

Tuesday, March 15, 2011

tu bata......

,
जब दिल करे तो तू बता
किस बात से सजदा करू
इज़हार तो अब कर दिया
ये तू बता अब क्या करू

पर्दा नहीं अब तुझसे कोई 
मालूम है सब कुछ तुझे 
बंदिश है क्या अब बोल दे
गर प्यार है मुझसे तुझे

तो तू बता , हाँ तू बता

किस रहपे अब मैं चालू
किस मोड़पे  सजदा करू
तदबीर दे इस दर्द का
जिहत दिखा के अपनी तू 

ये आखिरी सवाल है
गर मैं तेरी मंजिल नहीं
तो ये बात किस राह पे  
मिल जाएगी, तू मुझे

हाँ
तू मुझे, हाँ तू मुझे....

Sunday, March 6, 2011

hayaal ban baithi hai..........

,


हयाल बन बैठी है वो हमारी रहो की गर जिहत बनती तो बात कुछ और होती हम तो बस राहगीर थे उनकी रहो के......... न जाने फिर किस बात का रस्क था उनको......... गर यूंही खुद_आरा होता ये अकेलापन हमको तो यूं साथ न मंगाते इन रहो पे उनका......... खैर मलाल नहीं की वो साथ न चल सके बस मलाल है उनके हयाल होने का...... 

Saturday, March 5, 2011

ajnabee....

,
फिर कुछ कह गया वो अजनबी सा चेहरा...... 
फिर गुम हो गया वो अजनबी सा चेहरा......... 
न जाने क्यों इन आँखों मे अपना अक्स दे गया वो 
मैं तनहाइयों में खोजता रहा वो भीड़ में गुम गया...... 
अब क्या तलाशु उसे जो इस कदर खो गया..... 
क्या वो सच में अजनबी था या कोई अपना मेरा... 
हैराँ क्यों हूँ आज मै और जज़्बाती हो रहा......... 
क्यों वो अजनबी सा चेहरा मुझे याद आ रहा.....

Sunday, February 27, 2011

marghat.......

,
मरघट..
मरघट ही है अंतिम सीमा ,
हर एक आने वाले की ,
फिर क्यों तू डरता है प्राणी,
इस अंतिम सीमा छूने से...
बस यू ही चलता जा तू बस ,
जीवन की इस कठिन रह पर ,
पथ की अन्तिम सीमा पर,
मरघट ही पाएगा
तू फिर...
जीवन चक्र बना है ये तो ,
जो छूता जाता है सब को ,
न जाने किस पल किस लम्हा ,
ये छू जायेगा तुम को........
क्योकि 
मरघट ही है अंतिम सीमा
हर एक आने वाले की
तू भी तो आया है जग में
फिर कैसे तू बच पाएगा........

Thursday, February 24, 2011

yeh antar-man mera........ yeh antar-man tera.........

,
कुछ कहता है मुझसे ये अंतर मन मेरा , कुछ कहता है तुझसे ये अंतर मन तेरा , इन तनहइयो में ये क्या खोजते हो , इन अंधियारी गलियों में क्यों घूमते हो , कुछ मुझको बतादो कुछ खुद को सुनादो ........ जरा रौशनी में आके कभी खुद को दिखादो , मंजिल ना सही अपने इरादे से ही कभी गुफ्तगू करदो...........................

Tuesday, February 22, 2011

bemani........

,
क्यों जिंदगी मेरी बेमानी सी , कुछ आज लग रही है क्यों खुशिया मेरी बेमानी सी , मुझे आज लग रही है क्योकि जोआज चुप-चाप है यहाँ पर , कल ये शायद चुप न रहेगी ये बेमानी जिंदगी है मेरी , कल शायद न रहेगी..... कुछ पन्ने समाते लू जो बिखरे है इसके , उन अनजानी सी गलियों की मोड़ो पे कहीं जो , मै शायद यहाँ था , मै शायद वहाँ था , न जाने किस पल किस मोड़ पे खड़ा था......वो कहती थी मुझसे यकीन मुझ पे न करना जो खाओ गर धोका तो मुझे बेमान न कहना ये फितरत है मेरी हर मोड़ पे बदलना फिर कहे का धोका कहे की बेमानी.... हर जीव में मै कुछ पल हूँ ठहरती फिर दमन झटक के आगे हूँ बढती मै आज हूँ तेरी कल हु किसी और की ये फितरत है मेरी नहीं कोई बेमानी मै ....

kuch lagta hain yun.........

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तू आज मेरे साथ है तो शायद ये तेरे जस्बाद है मै आज तेरे साथ हु तो शायद ये मेरे हलाद है पर कल ये जरुरी नहीं की यु हम-तुम साथ हो क्योकि न जज्बाद रहते है न हलाद .....ये सब रेत है जो पानी संग बह्जाते है और फिर किसी लहर के आने पर एक नयी सतह बनाते है मुमकिन हो शायद कुछ रिश्ते थम जाये इस रेत पर , पर न होने की गुंजाईश भी कुछ कम नहीं.....पर ये मालूम नहीं की इस दमन में रेत है या लहरों का पानी ये जिंदगी है या किसी पुस्तक की कहानी..........................................

 

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