Sunday, February 27, 2011

marghat.......

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मरघट..
मरघट ही है अंतिम सीमा ,
हर एक आने वाले की ,
फिर क्यों तू डरता है प्राणी,
इस अंतिम सीमा छूने से...
बस यू ही चलता जा तू बस ,
जीवन की इस कठिन रह पर ,
पथ की अन्तिम सीमा पर,
मरघट ही पाएगा
तू फिर...
जीवन चक्र बना है ये तो ,
जो छूता जाता है सब को ,
न जाने किस पल किस लम्हा ,
ये छू जायेगा तुम को........
क्योकि 
मरघट ही है अंतिम सीमा
हर एक आने वाले की
तू भी तो आया है जग में
फिर कैसे तू बच पाएगा........

Thursday, February 24, 2011

yeh antar-man mera........ yeh antar-man tera.........

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कुछ कहता है मुझसे ये अंतर मन मेरा , कुछ कहता है तुझसे ये अंतर मन तेरा , इन तनहइयो में ये क्या खोजते हो , इन अंधियारी गलियों में क्यों घूमते हो , कुछ मुझको बतादो कुछ खुद को सुनादो ........ जरा रौशनी में आके कभी खुद को दिखादो , मंजिल ना सही अपने इरादे से ही कभी गुफ्तगू करदो...........................

Tuesday, February 22, 2011

bemani........

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क्यों जिंदगी मेरी बेमानी सी , कुछ आज लग रही है क्यों खुशिया मेरी बेमानी सी , मुझे आज लग रही है क्योकि जोआज चुप-चाप है यहाँ पर , कल ये शायद चुप न रहेगी ये बेमानी जिंदगी है मेरी , कल शायद न रहेगी..... कुछ पन्ने समाते लू जो बिखरे है इसके , उन अनजानी सी गलियों की मोड़ो पे कहीं जो , मै शायद यहाँ था , मै शायद वहाँ था , न जाने किस पल किस मोड़ पे खड़ा था......वो कहती थी मुझसे यकीन मुझ पे न करना जो खाओ गर धोका तो मुझे बेमान न कहना ये फितरत है मेरी हर मोड़ पे बदलना फिर कहे का धोका कहे की बेमानी.... हर जीव में मै कुछ पल हूँ ठहरती फिर दमन झटक के आगे हूँ बढती मै आज हूँ तेरी कल हु किसी और की ये फितरत है मेरी नहीं कोई बेमानी मै ....

kuch lagta hain yun.........

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तू आज मेरे साथ है तो शायद ये तेरे जस्बाद है मै आज तेरे साथ हु तो शायद ये मेरे हलाद है पर कल ये जरुरी नहीं की यु हम-तुम साथ हो क्योकि न जज्बाद रहते है न हलाद .....ये सब रेत है जो पानी संग बह्जाते है और फिर किसी लहर के आने पर एक नयी सतह बनाते है मुमकिन हो शायद कुछ रिश्ते थम जाये इस रेत पर , पर न होने की गुंजाईश भी कुछ कम नहीं.....पर ये मालूम नहीं की इस दमन में रेत है या लहरों का पानी ये जिंदगी है या किसी पुस्तक की कहानी..........................................

 

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