Wednesday, October 10, 2012

Kinara - e - zindagi (किनारा-ए -ज़िन्दगी)

,


पन्ने समेटता हूँ मै,
ज़िन्दगी के फलसफों के यूं............
की कोई हसरत मेरी यहाँ,
बाकी न रहे फिर.............

सो बैठ खामोश कुछ लम्हा, 
मै जोड़ता हूँ............
उन पन्नो पे बिखरे फलसफों से कुछ खुद को, 
ताकी किनारा-ए -ज़िन्दगी हासिल हो हमे भी.............
 

ankahe alfaz.......... Copyright © 2011 -- Template created by Ritesh Rastogi -- Powered by Ritesh Rastogi