Wednesday, February 29, 2012

Gar bemani na hoti... (गर बेमानी न होती)

,


गर बेमानी न होती आरज़ू उनकी.....
तो आज अपने पैमाने ही कुछ और होते..... 
हम तो जी लिए बस उनकी हसरतों में..... 
पर शायद हमसफ़र न बन सके उनकी राहों में.....

Friday, February 24, 2012

lafzon ke fitur (लफ़्ज़ों के फितूर)

,
गर लफ़्ज़ों के फितूर को हम यूंही बयाँ कर देते....
तो ये मुलाकात हालत सभी अपने होते....
पर इस जुबान का नपा होना, हमे गम-जया कर गया....
हम इज़हार-ए-बयाँ के अल्फाज़ ही खोजते रह गए और कोई हमारा मुक़द्दर ले गया...

Thursday, February 16, 2012

paimane (पैमाने )

,



मुकम्मल जहाँ नहीं क्या कोई, 
तेरे इन अल्फाज़ों के अक्स में...
या 
तेरे पैमाने ही कुछ इस कदर थे,
की वो बयाँ न हो सके...

Wednesday, February 15, 2012

wazu (वजू)

,
तेरे होने के वजू को खोदूं,
कुछ ऐसा दस्तूर कर दे तू ......
गर काफूर करले तस्वीर अपनी,
इन आँखों के नगमे से जो तू ......

Tuesday, February 7, 2012

siyasi pech....... (सियासी पेच)

,

सियासी पेच लड़ने को, 
तमाशा हो रहा देखो....
हुकूमत चाहिए इनको ,
यहाँ नोटेय कमाने को....

कभी ठाकुर बने है ये,
कभी पंडित बनेगे ये....
लिए मुद्दा विभाजन का,
तुम्हे बांटा करे है ये....

तुम्हारा वोट पाने को,
ये दरवाजा हैं खटकाये.....
बड़े वादे लिए मुहं में, 
तुम्हारा वोट ठग जाये......


कोई गाँधी बना फिरता ,
लगा बस नाम ही उनका....
कोई ले संग की लाठी ,
तुम्हारे भावों को छगता है....

छगन विद्या में माहिर हैं,
सियासत के सभी प्यादे.....
न कोई ईमान है इनका,
न कोई भगवान् है इनका....


कभी ले मंदिर का मुद्दा,
ये कुर्सी जीत जाते हैं.....
तो कभी ले आरक्षण की गर्मी,
ये पिछड़ों को रिझातें हैं.....

तुम्हारा उदधार करने को,
ये बीड़ा तो उठातें हैं....
पर किताबों और पन्नो में,
तरक्की ग़ुम कर जातें हैं......

तरक्की ग़ुम कर जातें हैं......    

 

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