Saturday, January 26, 2013

Gantantra.....(गणतंत्र)

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गणतंत्र की हत्या करके ,
ये गणतंत्र दिवस मनाते  हैं ।
बांध  के पट्टी आँखों पे,
पूरे देश को यूं  झूठलाते  हैं ।।

उन जनप्रतिनिधियों से,
मैं तो बस ये पूछ रहा ।
कि  क्या तुम लोगों  को भैया,
इस शब्द का मतलब मालूम है ।।

या 
फिर सत्ता के इन गलियारों में,
तुम इसको  भी भूल चुके ।
खैर 

राष्ट्र गन गाने से नहीं,
न ही तिरंगा लहराने से।
संबिधान की इज्जत होती है,
जनता का मान बढ़ाने  से ।।

जिसने मत से अपने ,
तुमको है गौरवान्वित  किया।
उनपे ही देखो तुमने,
भाँजी लाठी और गोले  यहाँ ।।

क्या  यही राष्ट्र का मान है ,
और उसकी आवाज का ।
या फिर ये है, इस गणतंत्र की 
यूं गला घोट कर हत्या ।।

Friday, January 11, 2013

Khwabgahon ke darmiyan..... (ख्वाबगाहों के दरमियाँ....)

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ये वक्त है या मुक्कदर, हम मुकर्रर न कर सके
बस बन पतंग वक्त की, इस फिजा में उड़ रहे ..........

हमे तो इंतेज़ार है बस, फिजाओं के पलटने का        
जिन्हें इल्म हो बस, हमारी चाहतों के मंजरों का.........

सो बैठ खामोश हम यहाँ, सबरा का लेते हैं इम्तिहां
ताकी सच कर सके, जो है ख्वाबगाहों के दरमियाँ........

ख्वाबगाहों के दरमियाँ
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