Sunday, December 30, 2012

Fir zindagi....(फिर ज़िन्दगी...)

,

फिर ज़िन्दगी कि हकीकत से,
रूबरू कराया है वक़्त ने ।
ये मोड है इस सफ़र का ,
या रहे-ए-दस्तूर कोई ।।

मै मुसाफिर न था ज़िन्दगी कि
उन तनग गलियों का ।
पर क्या करूँ वक़्त ने रास्ता ,
तैय कराया है उन गलियों का ।।



                                                              ------ रितेश रस्तोगी 

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