Sunday, December 30, 2012

Fir ek lamha..... (फिर एक लम्हा....)

,

फिर एक लम्हा मानो  खत्म होने को है...
एक कारवां छोड दूजे के हम होने को हैं...
पर न मालूम कहाँ मंजिलें हैं छुपी ...
जिनकी हसरत में हम सब कुछ खोने को हैं ...

Fir zindagi....(फिर ज़िन्दगी...)

,

फिर ज़िन्दगी कि हकीकत से,
रूबरू कराया है वक़्त ने ।
ये मोड है इस सफ़र का ,
या रहे-ए-दस्तूर कोई ।।

मै मुसाफिर न था ज़िन्दगी कि
उन तनग गलियों का ।
पर क्या करूँ वक़्त ने रास्ता ,
तैय कराया है उन गलियों का ।।


Saturday, December 29, 2012

Jo maun thi fizayen (जो मौन थी फिजाएं....)

,



जो मौन थी फिजाएं, 
आज वो भी है रो पड़ी।
ले अश्रुओं कि धरा, 
पूरी सदी है रो पड़ी।।

सो जग जाओ अभी भी, 
ओ आका इस जामने के।
के कहीं ये जग गाये तो, 
शायद तुम आका न हो फिर ।।

Thursday, December 20, 2012

Rok baithe kadam wo.... (रोक बैठे कदम..)

,



रोक बैठे कदम वो हमारी आहटों पे, की कहीं रास्तों पे नज़र मिल न जाये..........
सो रास्ता ही यहाँ पर बदल डाला हमने, की नज़रों को उनकी कोई तकलुफ़ न हो फिर............

Wednesday, October 10, 2012

Kinara - e - zindagi (किनारा-ए -ज़िन्दगी)

,


पन्ने समेटता हूँ मै,
ज़िन्दगी के फलसफों के यूं............
की कोई हसरत मेरी यहाँ,
बाकी न रहे फिर.............

सो बैठ खामोश कुछ लम्हा, 
मै जोड़ता हूँ............
उन पन्नो पे बिखरे फलसफों से कुछ खुद को, 
ताकी किनारा-ए -ज़िन्दगी हासिल हो हमे भी.............

Tuesday, September 25, 2012

khud ko khojta hoon(खुद को खोजता हूँ......)

,
रूह से बिछड़ के खुद की, खुद को खोजता हूँ...
कि परछाइयों के दमन तक, अब तो टटोलता हूँ....
चेहरे यहाँ पे खुद के , इतने बदल चूका हूँ....
की हर चेहरे को देख बस, खुद का चेहरा सोचता हूँ ...

                                                                                              ---रितेश रस्तोगी

Wednesday, May 23, 2012

Mai musafir bana tha.... ( मै मुसाफिर बना था..... )

,

मै मुसाफिर बना था,
कारवां का तुम्हारे....
तो साथ मंजिल तुम्हारे, 
कुछ तै कर रहा था....

पर रस्ते कुछ अलग से,
दिख रहें हैं यहाँ पर....
सो अलविदा कहूँगा,
इस सफ़र को तुम्हारे....

पर मिलूँगा यकीन्न,
किसी और डगर पर....
किसी और मोड़,
किसी और सफ़र पर....

Thursday, May 3, 2012

Tanhai se mai bhag raha... (तन्हाई से मै भाग रहा...)

,
तन्हा  तन्हा रहने का जब, 
एहसास मुझे कुछ होता है..... 
मै भीड़ में खिच कर आता हूँ, 
उस एहसास  कों दूर भगाता  हूं....

पर जाने तन्हा मंजर 
मुझको क्यों घेरा करते  है.....
कोई कशिश लिए कोई दर्द लिये,  
मानों  ये फांस चुभोतें है....... 

यही वजह है, जब भी मै, 
अपनी यादों को दोहराता हूँ....
तब तन्हाई के हर लम्हे को 
खुद से दूर भागता हूँ....   

जैसे  

यादों के पक्के धागों से, 
पल-पल मै ख़ुद कों खीच रहा...  
फिर बांध कहीं खुद को उनसे  
तन्हाई से मै भाग रहा....

तन्हाई से मै भाग रहा....

Sunday, April 29, 2012

Kagaaz pe jo (कागज़ पे जो )

,


कागज़ पे जो सिमटे यहाँ,
तेरे बिखरे हुए अल्फाज़ वो.....
मानो की हमसे कह गए
तेरी तन्हाईओं क़े कुछ राज़ वो....

पढ़ कर उन्हें लगता था बस,
कि  पढता रहूँ, पढता रहूँ.... 
तेरी रूह की आवाज को 
चुपचाप बस सुनता रहूँ....

पर न जाने क्यों पढ़कर उसे,
अपना सा कुछ है लग रहा;
जैसे मेरा अपना ही अक्स,
उसमे मुझे हो दिख रहा.....

इसलिए तुम तो बस यहाँ
उन अल्फाज़ों को लिखते रहो....
पन्नो पे दे शक्ल उनको,
हम पे यूं बस जाहिर करो....

हम पे यूं बस जाहिर करो....

Monday, March 19, 2012

bemani bahut hai ( बेमानी बहुत है )

,

ज़िन्दगी के यूं तो, 
अफसाने बहुत हैं.....
मौत के कम इसके,
दीवाने बहुत हैं.......

यूं तो हर मोड़ पे,
इसे चाह करें हम.....
इसकी फितरत में फिर भी,
बेमानी बहुत है.......

Friday, March 16, 2012

kuch modo pe (कुछ मोड़ो पे)

,

कुछ मोड़ो पे आ रुके,
तो कुछ मंजिल से जा मिले.....
थे ये मुकद्दर के फासले,
जो वक़्त की ठोकर पे बस रुके...

Wednesday, March 14, 2012

apne paymanoo me (अपने पयामानो में)

,

वो अपने पयामानो में, कुछ बयाँ होते रहे थे ,
और हम उनके पयमाने ही न पढ़ सके......
मनो वो अपने अल्फाज़ो में, ही कुछ बुद-बुदा रहे थे,
और हम उनके अल्फाज़ ही न समझ सके.....

Wednesday, March 7, 2012

Gar bandh pata hasrate (गर बाँध पाता हसरते)

,


गर बाँध पाता हसरते...
तो तेरी चाहत न होती...
तुझे पाने की तमन्ना...
और आरजू न होती...

Hasrat (हसरत )

,


हसरतों को पन्नो में 
समेटने चला था...
पर मालूम न था 
उसका अंदाज़-ए-बयाँ... 

सो कुछ लिखता गया.. 
कुछ कहता गया...  
 ख्वाबगाहों से उठा बस ... 
कागज़ पे ही पटकता गया... 

 ****पर जब देखा उन्हें तो मालूम हुआ की**** 
जैसे  

कुछ पूरी थी उनमे...... 
कुछ अधूरी थी उनमे.... 
कुछ कही हुई...... 
कुछ अनकही थी उनमे.....  

सो मै कहता गया... 
और मै सहता गया... 
कुछ अधूरी की फंस लिए....
बस अल्फाजों में अपने बहता गया.... 

मनो एक तमन्ना लिए..... 
एक आरजू लिए..... 
उन्हें पूरा करने का बस...... 
खूद से एक वादा लिए.....

Thursday, March 1, 2012

Raha jati hai yaad (रह जाती है याद )

,
 
वो बचपन की यादें
वो लड़पन का साथ
वो कुछ मेरी बातें
वो कुछ तेरी याद

वो किस्से सुनाना
वो लड़की पटाना
वो मुड़-मुड़ के कहना
वो दिखती है माल

वो कह देना तुमसे
अपने दिल का सब हाल
फिर सुनना तुम्हारी
दिनभर की बात

याद है मुझे अब भी
वो सारी बात
वो लड़ना मेरा
वो चिढ़ना तेरा

वो झगड़े के बाद
पैसे लौटने की बात
फिर कुछ सोच कर
वो गरियाना मेरा यूं

वो फैलाकर बकर 
बस लगाना मज़े यूँ
फिर सब को हँसा के
यूँ महफ़िल सजाना 

फिर होली की मस्ती
दिवाली की धूम
वो दशहरे की हुल्लड़ 
न्यू इयर की झूम

वो हर बात पर 
बस करना मजाक
वो हर बात पर
बस दोहराना यही कि

टेंशन से होता नहीं
 अपना कोई काम
फिर तिकड़म लगा कर 
हर मुश्किल भगाना 

याद है मुझे अब-भी
वो हर एक जुगाड़
आये जो मुश्किल
करना बस याद

 दिल से दे देना
एक दस्तक-ए-खास
फिर पाओ गे तुम
मुझे अपने ही पास

क्योंकि दोस्ती है अपनी
इस दुनिया से खास
और ये बचपन की यादें
और लड़पन का साथ

याद आएगा हमको
मेरे-तेरे जाने के बाद
क्योंकी मिट जाता है
सब कुछ जाने के बाद

रह जाती है याद
रह जाती है याद
.......

Wednesday, February 29, 2012

Gar bemani na hoti... (गर बेमानी न होती)

,


गर बेमानी न होती आरज़ू उनकी.....
तो आज अपने पैमाने ही कुछ और होते..... 
हम तो जी लिए बस उनकी हसरतों में..... 
पर शायद हमसफ़र न बन सके उनकी राहों में.....

Friday, February 24, 2012

lafzon ke fitur (लफ़्ज़ों के फितूर)

,
गर लफ़्ज़ों के फितूर को हम यूंही बयाँ कर देते....
तो ये मुलाकात हालत सभी अपने होते....
पर इस जुबान का नपा होना, हमे गम-जया कर गया....
हम इज़हार-ए-बयाँ के अल्फाज़ ही खोजते रह गए और कोई हमारा मुक़द्दर ले गया...

Thursday, February 16, 2012

paimane (पैमाने )

,



मुकम्मल जहाँ नहीं क्या कोई, 
तेरे इन अल्फाज़ों के अक्स में...
या 
तेरे पैमाने ही कुछ इस कदर थे,
की वो बयाँ न हो सके...

Wednesday, February 15, 2012

wazu (वजू)

,
तेरे होने के वजू को खोदूं,
कुछ ऐसा दस्तूर कर दे तू ......
गर काफूर करले तस्वीर अपनी,
इन आँखों के नगमे से जो तू ......

Tuesday, February 7, 2012

siyasi pech....... (सियासी पेच)

,

सियासी पेच लड़ने को, 
तमाशा हो रहा देखो....
हुकूमत चाहिए इनको ,
यहाँ नोटेय कमाने को....

कभी ठाकुर बने है ये,
कभी पंडित बनेगे ये....
लिए मुद्दा विभाजन का,
तुम्हे बांटा करे है ये....

तुम्हारा वोट पाने को,
ये दरवाजा हैं खटकाये.....
बड़े वादे लिए मुहं में, 
तुम्हारा वोट ठग जाये......


कोई गाँधी बना फिरता ,
लगा बस नाम ही उनका....
कोई ले संग की लाठी ,
तुम्हारे भावों को छगता है....

छगन विद्या में माहिर हैं,
सियासत के सभी प्यादे.....
न कोई ईमान है इनका,
न कोई भगवान् है इनका....


कभी ले मंदिर का मुद्दा,
ये कुर्सी जीत जाते हैं.....
तो कभी ले आरक्षण की गर्मी,
ये पिछड़ों को रिझातें हैं.....

तुम्हारा उदधार करने को,
ये बीड़ा तो उठातें हैं....
पर किताबों और पन्नो में,
तरक्की ग़ुम कर जातें हैं......

तरक्की ग़ुम कर जातें हैं......    

Monday, January 30, 2012

khwabon se bichaad (ख्वाबों से बिछड़)

,


ख्वाबों से बिछड़ फिर तलाशता था उन्हें 
हसरतों की रौशनी में ख्वाब्गाहों के तले
ले उम्मीद का दामन बस हम तो थे चले 
पग-डंडियों के किनारे रास्तों के तले...     

Thursday, January 5, 2012

fir leh shakla teri ruh ka... (फिर लेह शक्ल तेरी रूह का)

,

फिर लेह शक्ल तेरी रूह का,

वो हमे कुछ बयां कर गयी

हम सोचते थे जिस सवाल को,

वो जवाब उस बात  का दे गयी

फिर रस्क किस बात का हम

करें तो करें उसे........

सो ले बस, इरादा रूठने का

हम तो एक
बहाना हैं खोजते....

हाँ बहाना हैं खोजते.... 

                                                                                                                 ---------रितेश रस्तोगी

Tere alfaz (तेरे अल्फाज़ )

,
तेरे अल्फाज़ तेरे लफ्ज़ बयाँ करते हैं.....
कुछ हकीकत तो कुछ ख़यालात बयाँ करतें हैं.....

                                                                                                                 ---------रितेश रस्तोगी

sawalon ko talashta tha (सवालो को तलाशता था)

,
सवालो को तलाशता था,
कुछ जवाबों के बाद, 
किसी अनजानी सी लहर के, 
जैसे उतार जाने के बाद.... 

पर न जाने क्यों आज, 
रुक गए है ये लम्हे, 
बिन सवालों के आज, 
बिन जवाबों के आज....
रुकूँ तो रुकूँ मैं, 
पर ये सोचता हूँ, 
की क्या कामिल नहीं, 
कोई इन मंजरों में....

जो इन सवालों की रूह को, 
पल भर में समझ ले....
                                                                                                                 ---------रितेश रस्तोगी

Wednesday, January 4, 2012

ilzamo ki kadi ( इल्जामो की कड़ी )

,
इल्जामो की कड़ी कुछ ऐसी लगी की, गलतियों का सबब हम लगा न सके फिर, 

टूट कर हम गिरे उन सवालों में यूं फिर, की उन सवालों का सबब हम लगा न सके फिर...
 

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