Sunday, December 30, 2012
Saturday, December 29, 2012
Thursday, December 20, 2012
Wednesday, October 10, 2012
Tuesday, September 25, 2012
Wednesday, May 23, 2012
Thursday, May 3, 2012
Tanhai se mai bhag raha... (तन्हाई से मै भाग रहा...)
Posted by
ankahe alfaz
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10:39 PM
तन्हा तन्हा रहने का जब,
एहसास मुझे कुछ होता है.....
मै भीड़ में खिच कर आता हूँ,
उस एहसास कों दूर भगाता हूं....
पर जाने तन्हा मंजर,
मुझको क्यों घेरा करते है.....
कोई कशिश लिए कोई दर्द लिये,
मानों ये फांस चुभोतें है.......
यही वजह है, जब भी मै,
अपनी यादों को दोहराता हूँ....
तब तन्हाई के हर लम्हे को
खुद से दूर भागता हूँ....
जैसे
यादों के पक्के धागों से,
पल-पल मै ख़ुद कों खीच रहा...
फिर बांध कहीं खुद को उनसे
तन्हाई से मै भाग रहा....
तन्हाई से मै भाग रहा....
Sunday, April 29, 2012
Kagaaz pe jo (कागज़ पे जो )
Posted by
ankahe alfaz
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7:48 AM
तेरे बिखरे हुए अल्फाज़ वो.....
मानो की हमसे कह गए
तेरी तन्हाईओं क़े कुछ राज़ वो....
पढ़ कर उन्हें लगता था बस,
कि पढता रहूँ, पढता रहूँ....
तेरी रूह की आवाज को
चुपचाप बस सुनता रहूँ....
पर न जाने क्यों पढ़कर उसे,
अपना सा कुछ है लग रहा;
जैसे मेरा अपना ही अक्स,
उसमे मुझे हो दिख रहा.....
इसलिए तुम तो बस यहाँ
उन अल्फाज़ों को लिखते रहो....
पन्नो पे दे शक्ल उनको,
हम पे यूं बस जाहिर करो....
हम पे यूं बस जाहिर करो....
Monday, March 19, 2012
Friday, March 16, 2012
Wednesday, March 14, 2012
Wednesday, March 7, 2012
Hasrat (हसरत )
Posted by
ankahe alfaz
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6:34 AM
समेटने चला था...
पर मालूम न था
उसका अंदाज़-ए-बयाँ...
सो कुछ लिखता गया..
कुछ कहता गया...
ख्वाबगाहों से उठा बस ...
कागज़ पे ही पटकता गया...
****पर जब देखा उन्हें तो मालूम हुआ की****
जैसे
कुछ पूरी थी उनमे......
कुछ अधूरी थी उनमे....
कुछ कही हुई......
कुछ अनकही थी उनमे.....
सो मै कहता गया...
और मै सहता गया...
कुछ अधूरी की फंस लिए....
बस अल्फाजों में अपने बहता गया....
मनो एक तमन्ना लिए.....
एक आरजू लिए.....
उन्हें पूरा करने का बस......
खूद से एक वादा लिए.....
Thursday, March 1, 2012
Raha jati hai yaad (रह जाती है याद )
Posted by
ankahe alfaz
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3:05 AM
वो बचपन की यादें
वो लड़पन का साथ
वो कुछ मेरी बातें
वो कुछ तेरी याद
वो किस्से सुनाना
वो लड़की पटाना
वो मुड़-मुड़ के कहना
वो दिखती है माल
वो कह देना तुमसे
अपने दिल का सब हाल
फिर सुनना तुम्हारी
दिनभर की बात
याद है मुझे अब भी
वो सारी बात
वो लड़ना मेरा
वो चिढ़ना तेरा
वो झगड़े के बाद
पैसे लौटने की बात
फिर कुछ सोच कर
वो गरियाना मेरा यूं
वो फैलाकर बकर
बस लगाना मज़े यूँ
फिर सब को हँसा के
यूँ महफ़िल सजाना
फिर होली की मस्ती
दिवाली की धूम
वो दशहरे की हुल्लड़
न्यू इयर की झूम
वो हर बात पर
बस करना मजाक
वो हर बात पर
बस दोहराना यही कि
टेंशन से होता नहीं
अपना कोई काम
फिर तिकड़म लगा कर
हर मुश्किल भगाना
याद है मुझे अब-भी
वो हर एक जुगाड़
आये जो मुश्किल
करना बस याद
दिल से दे देना
एक दस्तक-ए-खास
फिर पाओ गे तुम
मुझे अपने ही पास
क्योंकि दोस्ती है अपनी
इस दुनिया से खास
और ये बचपन की यादें
और लड़पन का साथ
याद आएगा हमको
मेरे-तेरे जाने के बाद
क्योंकी मिट जाता है
सब कुछ जाने के बाद
रह जाती है याद
रह जाती है याद
.......
Wednesday, February 29, 2012
Friday, February 24, 2012
Thursday, February 16, 2012
Wednesday, February 15, 2012
Tuesday, February 7, 2012
siyasi pech....... (सियासी पेच)
Posted by
ankahe alfaz
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2:56 PM
हुकूमत चाहिए इनको ,
यहाँ नोटेय कमाने को....
कभी ठाकुर बने है ये,
कभी पंडित बनेगे ये....
लिए मुद्दा विभाजन का,
तुम्हे बांटा करे है ये....
तुम्हारा वोट पाने को,
ये दरवाजा हैं खटकाये.....
बड़े वादे लिए मुहं में,
तुम्हारा वोट ठग जाये......
कोई गाँधी बना फिरता ,
लगा बस नाम ही उनका....
कोई ले संग की लाठी ,
तुम्हारे भावों को छगता है....
छगन विद्या में माहिर हैं,
सियासत के सभी प्यादे.....
न कोई ईमान है इनका,
न कोई भगवान् है इनका....
तरक्की ग़ुम कर जातें हैं......
कभी ले मंदिर का मुद्दा,
ये कुर्सी जीत जाते हैं.....
तो कभी ले आरक्षण की गर्मी,
ये पिछड़ों को रिझातें हैं.....
तुम्हारा उदधार करने को,
ये बीड़ा तो उठातें हैं....
पर किताबों और पन्नो में,
तरक्की ग़ुम कर जातें हैं......
तरक्की ग़ुम कर जातें हैं......
Monday, January 30, 2012
Thursday, January 5, 2012
sawalon ko talashta tha (सवालो को तलाशता था)
Posted by
ankahe alfaz
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2:09 AM
सवालो को तलाशता था,
---------रितेश रस्तोगी
कुछ जवाबों के बाद,
किसी अनजानी सी लहर के,
जैसे उतार जाने के बाद....
पर न जाने क्यों आज,
रुक गए है ये लम्हे,
बिन सवालों के आज,
बिन जवाबों के आज....
रुकूँ तो रुकूँ मैं,
पर ये सोचता हूँ,
की क्या कामिल नहीं,
कोई इन मंजरों में....
जो इन सवालों की रूह को,
पल भर में समझ ले.... ---------रितेश रस्तोगी
Wednesday, January 4, 2012
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