वो बचपन की यादें
वो लड़पन का साथ
वो कुछ मेरी बातें
वो कुछ तेरी याद
वो किस्से सुनाना
वो लड़की पटाना
वो मुड़-मुड़ के कहना
वो दिखती है माल
वो कह देना तुमसे
अपने दिल का सब हाल
फिर सुनना तुम्हारी
दिनभर की बात
याद है मुझे अब भी
वो सारी बात
वो लड़ना मेरा
वो चिढ़ना तेरा
वो झगड़े के बाद
पैसे लौटने की बात
फिर कुछ सोच कर
वो गरियाना मेरा यूं
वो फैलाकर बकर
बस लगाना मज़े यूँ
फिर सब को हँसा के
यूँ महफ़िल सजाना
फिर होली की मस्ती
दिवाली की धूम
वो दशहरे की हुल्लड़
न्यू इयर की झूम
वो हर बात पर
बस करना मजाक
वो हर बात पर
बस दोहराना यही कि
टेंशन से होता नहीं
अपना कोई काम
फिर तिकड़म लगा कर
हर मुश्किल भगाना
याद है मुझे अब-भी
वो हर एक जुगाड़
आये जो मुश्किल
करना बस याद
दिल से दे देना
एक दस्तक-ए-खास
फिर पाओ गे तुम
मुझे अपने ही पास
क्योंकि दोस्ती है अपनी
इस दुनिया से खास
और ये बचपन की यादें
और लड़पन का साथ
याद आएगा हमको
मेरे-तेरे जाने के बाद
क्योंकी मिट जाता है
सब कुछ जाने के बाद
रह जाती है याद
रह जाती है याद
.......
---रितेश रस्तोगी
This poem is dedicated to my best friend Sudhanshu Gupta on his 25th birthday.
इस कविता में आपके भावों का अनूठा संचय है
" वो किस्से सुनाना
वो लड़की पटाना
वो मुड़-मुड़ के कहना
वो दिखती है माल "
इनमे से मुझे ये पंक्तियाँ विशेषकर पसंद आयी।