Thursday, May 3, 2012

Tanhai se mai bhag raha... (तन्हाई से मै भाग रहा...)

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तन्हा  तन्हा रहने का जब, 
एहसास मुझे कुछ होता है..... 
मै भीड़ में खिच कर आता हूँ, 
उस एहसास  कों दूर भगाता  हूं....

पर जाने तन्हा मंजर 
मुझको क्यों घेरा करते  है.....
कोई कशिश लिए कोई दर्द लिये,  
मानों  ये फांस चुभोतें है....... 

यही वजह है, जब भी मै, 
अपनी यादों को दोहराता हूँ....
तब तन्हाई के हर लम्हे को 
खुद से दूर भागता हूँ....   

जैसे  

यादों के पक्के धागों से, 
पल-पल मै ख़ुद कों खीच रहा...  
फिर बांध कहीं खुद को उनसे  
तन्हाई से मै भाग रहा....

तन्हाई से मै भाग रहा....

                                                  ----रितेश रस्तोगी

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