ये वक्त है या मुक्कदर, हम मुकर्रर न कर सके
बस बन पतंग वक्त की, इस फिजा में उड़ रहे ..........
हमे तो इंतेज़ार है बस, फिजाओं के पलटने का
जिन्हें इल्म हो बस, हमारी चाहतों के मंजरों का.........
सो बैठ खामोश हम यहाँ, सबरा का लेते हैं इम्तिहां
ताकी सच कर सके, जो है ख्वाबगाहों के दरमियाँ........
ख्वाबगाहों के दरमियाँ
बस बन पतंग वक्त की, इस फिजा में उड़ रहे ..........
हमे तो इंतेज़ार है बस, फिजाओं के पलटने का
जिन्हें इल्म हो बस, हमारी चाहतों के मंजरों का.........
सो बैठ खामोश हम यहाँ, सबरा का लेते हैं इम्तिहां
ताकी सच कर सके, जो है ख्वाबगाहों के दरमियाँ........
ख्वाबगाहों के दरमियाँ
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भ्रष्ट और भ्रमित ब्यवस्थाओं के मध्य कोमल मन के अंतर्द्वंद की ब्यथा ..गहन अभिव्यक्ति !! शुभ कामनाएं रस्तोगी जी !!